Heart Diabetes की रामबाण औषधि (Arjun Ki Chhal) Terminalia Arjuna अर्जुन की छाल

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Arjun Ki Chhal

Terminalia Arjuna (अर्जुन की छाल) Arjun Ki Chhal

सातवीं शताब्दी में वागभट्ट द्वारा लिखित ग्रंथों में हृदयरोग की चिकित्सा का विशद् वर्णन किया गया है। इनमें कफज हृदयरोग की चिकित्सा के लिए Terminalia Arjuna (Arjun Ki Chhal) अर्जुन वृक्ष की छाल का प्रयोग बताया गया है। पित्तज हृदय रोग के लिए वृक्ष की छाल चूर्ण दूध में उबाल कर पीने की बात कही गई है। बंगसेन के अनुसार अर्जुन छाल के चूर्ण एवं गेहूं का चूर्ण बराबर मात्रा में बकरी के दूध तथा गाय के घी में उबाल कर शहद के साथ लेने से हृदय रोग में लाभ पहुंचता है।

Terminalia Arjuna अर्जुन वृक्ष का वानस्पतिक परिचय और प्राप्ति

अर्जुन एक सदाबहार वृक्ष है, जिसकी ऊंचाई 60-80 फुट तक होती है। इसका तना मोटा एवं शाखाएं तने के चारों ओर फैली रहती हैं। इसके पत्ते 10-15 से.मी. लम्बे, 4- 7 से.मी. चौड़े तथा विपरीत क्रम में लगे होते हैं। फूल सफेद तथा फल, 1-2 इंच लम्बे होते हैं। फलों में पंख के आकार के पांच उभार होते हैं। इसकी छाल बाहर से चमकीली सफेद व अन्दर से गहरे गुलाबी रंग की होती है।

अर्जुन वृक्ष सामान्यतः उत्तर प्रदेश के तराई के भागों व बिहार के दक्षिण में छोटा नागपुर, दक्कन के पठारी भाग, बर्मा तथा श्रीलंका में काफी संख्या में पाए जाते हैं। इसकी लगभग 15 किस्में पाई जाती हैं। शक्ति प्रदायक के रूप में प्रतिष्ठित होने के कारण संस्कृत में इसका नाम ‘अर्जुन’ रखा गया। तना सफेद होने के कारण इसे ‘धवला’ भी कहा गया है। इसे ‘वीरवृक्ष’ के नाम से भी पुकारा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम ‘टरमिनालिया अर्जुना’ है।

पुरातन काल में अर्जुन वृक्ष की छाल को हृदय रोग उपचार की प्रमुख औषधि के रूप में जाना जाता था। प्रख्यात् आयुर्वेदिक औषधि ‘अर्जुनारिष्ठ’ इस वृक्ष की छाल से ही तैयार की जाती थी। आज भी कुछ आयुर्वेदिक दवाओं में इसका प्रयोग किया जाता है।

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Terminalia Arjuna (अर्जुन की छाल) – रासायनिक विश्लेषण Arjun Ki Chhal

रासायनिक विश्लेषण द्वारा वृक्ष के विभिन्न भागों के संगठन का पता लगाया गया है। इसकी छाल में टैनिन 20-24 प्रतिशत तक पाया गया है। इसके अतिरिक्त छाल में से बीटा-सिटोस्टीरॉल, इलेजिक एसिड तथा एक ट्राईहाड्राक्सी- ट्राइटरपीन मोनो कार्बोक्सिलिक एसिड, अर्जुनिक एसिड विलगित किया गया है। छाल के अल्कोहलीय निष्कर्ष में अर्जुनीटीन नामक ग्लूकोसाइड, जिसके जलाशन स्वरूप अर्जुनिक एसिड एवं ग्लूकोज प्राप्त होते हैं, भी विलगित किया गया है।

 एक अन्य ग्लूकोसाइड अर्जुनीन तथा अर्जुनोलीन नामक यौगिक के साथ-साथ वृक्ष की छाल में सोडियम, पोटेशियम, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवण भी पर्याप्त मात्रा में पाए गए हैं।

इसके फलों में भी 7-20 प्रतिशत तक टैनिन पाया गया है। इसके पेट्रोलियम ईथर निष्कर्ष में कार्बनिक लवण तथा बीटा सिटोस्टीराल पाए गए हैं। जल में अघुलनशील भाग से अर्जुनिक अम्ल तथा घुलनशील भाग में मैनिटॉल, टैनिन तथा पर्याप्त मात्रा में पोटेशियम लवण प्राप्त किए गए हैं। पत्तियों में प्रोटीन 10 प्रतिशत, रेशे 7-8 प्रतिशत, अपचायी शर्करा 4.3 प्रतिशत, कुल शर्करा 5.75 प्रतिशत, स्टार्च 11 प्रतिशत तथा खनिज लवण 7 प्रतिशत पाए गए हैं।

औषधीय उपयोग Benefits of Terminalia Arjuna (अर्जुन की छाल) Arjun Ki Chhal

अर्जुन वृक्ष की छाल तीक्ष्ण होती है तथा इसमें ज्वरनाशक, पेचिश. निवारक, स्तम्भक, मूत्रल आदि औषधीय गुण पाए जाते हैं। अत्यधिक चोट जनित विभंजन तथा नील युक्त चोट की हालत में इसका दूध के साथ सेवन लाभदायक होता है। मानसिक तनाव में इसके चूर्ण का सेवन राहत देता है। लिवर सिरोसिस में यह स्वास्थ्य वर्द्धक टॉनिक के रूप में प्रयुक्त होता है।

इसका क्वाथ छालों, व्रण, अल्सर आदि को धोने के काम आता है। वृक्ष के फल विष अवरोधक एवं टॉनिक होते हैं। ताजी पत्तियों का स्वरस कान दर्द में प्रयोग किया जाता है। वृक्ष की मुलायम टहनियां कुछ आदिवासियों द्वारा मुंह के अल्सर तथा उदावर्त के इलाज में प्रयोग की जाती है।

भेषज्यीय परीक्षण एवं निष्कर्ष

अर्जुन वृक्ष की छाल हृदय की संकुचन शक्ति को बढ़ाती है। इसमें विद्यमान कैल्शियम लवण हृदय के अन्दर उपस्थित कैल्शियम चैनल को अवरुद्ध कर हृदय की धड़कन को सामान्य बनाता है तथा हृदय को शक्ति प्रदान करता है। कुत्तों पर किए गए परीक्षणों से पता चलता है कि अर्जुन के छाल से उपचारित करने पर हृदयघात से उत्पन्न घाव जल्द ठीक हो जाता है। इसके द्वारा रक्त कोलेस्ट्रॉल के स्तर में कमी दर्ज की गई है।

अर्जुन छाल का सेवन करने वालों में कोलेस्ट्रॉल के अतिरिक्त रक्त शर्करा, कैटाकोलामिन के बढ़े हुए स्तर में उल्लेखनीय कमी पाई गई। एंजाइना के दर्द से प्रभावित रोगियों के दर्द में धीरे-धीरे कमी तथा इसकी आवृत्ति में भी कमी दर्ज की गई। इसके सेवन से वजन में कमी तथा रक्तचाप पर नियंत्रण पाया गया।

वृक्ष की छाल में उपस्थित वसा, अम्ल, प्रोस्टोग्लैडिन के निर्माण में सहायक होती है। अतः इसके सेवन से रक्त में ‘प्रोस्टोग्लैडिन ई-2’ की मात्रा बढ़ जाती है। यह शरीर की रक्त वाहिनियों को फैला देता है, जिससे हृदय में आक्सीजन युक्त रक्त का संचार बढ़ जाता है।

इससे एंजाइना के दर्द में लाभ होता है। खजिज लवणों की उपस्थिति रक्तावरोध दूर करने में सहायक होती है। इसका सेवन करने से एल.डी.एल. कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम तथा एच.डी.एल. कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया है। अर्जुन का सेवन लिपिड चयापचय को ठीक कर हृदय रोग दूर करने में सहायक होता है। हृदयाघात से बचाव या हृदय रोग से मुक्ति के लिए इसकी छाल का प्रतिदिन सेवन लाभप्रद है। साथ ही इसके सेवन से शारीरिक शक्ति व स्फूर्ति बढ़ती है।

उपयोगी Terminalia Arjuna (अर्जुन की छाल) Arjun Ki Chhal

अर्जुन प्रायः सभी प्रान्तों में कहीं न कहीं पाया जाता है। इसका वृक्ष 60-70 फुट तक ऊंचा होता है। छाल चिकनी, सफेदीमायल, खाकी रंग की होती है और इस पर हल्के बैंगनी रंग की आभा दिखाई देती है।

गण धर्म (अर्जुन की छाल) Terminalia Arjuna (Arjun Ki Chhal)

यह कषाय, शीतवीर्य, उदर्द प्रशमन, हृद्य तथा कफ, पित्त, क्षतक्षय, विष, रक्त विकार, मेदोवृद्धि, प्रमेह और व्रण को दूर करने वाला है। अर्जुन की छाल का क्षीर पाक करके देने से हृदय रोग में बहुत लाभ होता है। इससे हृदय की पोषण क्रिया अच्छी होती है, हृदय को आराम और बल मिलता है।

Heart हृदय का स्पन्दन ठीक होता है। रक्तवाहिनियों से रक्त का जल भाग शरीर में रिसता है, वह इससे कम होता है और हृदय को उत्तेजना मिलता है। अर्जुन से रक्त भी शुद्ध होता है। रक्त पित्त और जीर्णज्वर में, जब रक्त दूषित होता है तब अर्जुन का प्रयोग किया जाता है।

आमस्चिक प्रयोग Terminalia Arjuna (अर्जुन की छाल) Arjun Ki Chhal

अर्जुन की छाल को दूध में उबालकर पुराना गुड़ अथवा मधु मिलाकर देने से हृदय की शिथिलता दूर होती है। अर्जुन वृक्ष की छाल 1 तोला लें, उसको जल से धो, कूट, गाय का दूध 16 तोला और 16 तोला जल मिलाकर मन्द-मन्द आंच पर पकाएं। जब सब जलकर केवल दूध बाकी रहे तब छानकर उसमें आधा तोला मिश्री तथा 5 नग छोटी इलायची के बीज का चूर्ण मिलाकर पिलाएं। इसे ‘अर्जुन क्षीर’ कहते हैं। अर्जुन छाल को रातभर जल में भिगोकर रखें और प्रातः इसका क्वाथ बनाकर मल-छानकर पीने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

इसके अंदर की छाल का क्वाथ बनाकर पिलाने से मूत्राघात में लाभ होता है। उक्त सभी अनुपयोगी अनुभवी वैद्य की देखरेख में ही अमल में लाएं।

शास्त्रीय विशिष्ट योगः अर्जुनारिष्ट, ककुमादि चूर्ण-इत्यादि।

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