Triphala देव-औषधि त्रिफला के चमत्कारी गुण

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Triphala Benefits

Triphala Benefits त्रिफला

त्रिफला Triphala हरड़, बहेड़ा और आंवला का मिश्रित योग है। आयुर्वेद वाङ्गमय में त्रिफला को जितनी महत्ता दी गई है, उतनी अन्य किसी योग को नहीं। अनुपान, मात्रा और संयोग भेद से त्रिफला को अनेक रोगों में प्रयोग किया जाता है। त्रिफला के बहुपयोगी होने के पीछे इसके विशिष्ट गुण, कर्म और प्रभाव ही मूल कारण है।

Triphala त्रिफला के तीनों घटक हरड़, बहेड़ा और आंवला अपना-अपना विशिष्ट प्रभाव रखते हैं। हरड़ सम्पूर्ण भारत में उत्पन्न होने वाला मध्यमाकार वृक्ष का फल है, जो पञ्च रस [लवण को छोड़कर] युक्त, उष्णवीर्य एवं रुक्ष प्रकृति का होता है। यह मृदुविरेचक, मेघ, चक्षुष्य, केश्य, अग्निदीपक एवं त्रिदोष का नाश करने वाला है।

इसी प्रकार बहेड़ा भी प्रायः सर्वत्र उपलब्ध मध्यमाकार वृक्ष का फल है। यह कषाय रस प्रधान, मधुर विपाकी एवं उष्णवीर्य वाला है। गुणों में त्रिदोष शामक, चक्षुष्य, केश्य, श्वांस-का सघ्न, कृमि नाशक है।

Ashwagandha

Amla आंवला सुपरिचित फल है, जो लवण के अतिरिक्त पञ्च रसयुक्त तथा शीतवीर्य होता है। गुणों में यह उत्तम रसायन, वृष्य, रक्तपित्त, प्रमेह नाशक, अग्निदीपक एवं त्रिदोष- शामक है। उपर्युक्त गुणों से युक्त हरड़, बहेड़ा, आंवले का मिश्रित योग ही त्रिफला कहलाता है। त्रिफला में तीनों को समान मात्रा में लेने का निर्देश किया गया है, किन्तु समभाग की व्याख्या में आचार्यों में मतभेद हैं।

कई लोग तीनों को समान वजन में लेना बताते हैं, कुछ लोक एक भाग हरड़, दो भाग बहेड़ा, और तीन भाग आंवला। कुछ लोगों की मान्यता एक भाग हरड़, दो भाग बहेड़ा और चार भाग आंवला लेने की है। उत्तम फल प्राप्ति के लिए एक भाग हरड़, दो भाग बहेड़ा और चार भाग आंवला को ही प्रयोग किया जाना चाहिए। तीनों को उक्त मात्रा में लेकर छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को अनुपान, मात्रा व संयोग भेद से विभिन्न रोगों में प्रयोग करने से चमत्कारिक लाभ होत’ है।

Triphala त्रिफला की मुख्य विशेषता इसका त्रिदोषामक गुण एवं पञ्चरस युक्त होना है। इन दोनों कारणों से यह तीनों दोषों से होने वाले सभी रोगों में फायदेमंद होता है। त्रिफला चूर्ण का विभिन्न रोगों में निम्रानुसार प्रयोग करना हितकारी रहता है।

कब्ज में Triphala

‘कब्ज रहने से शरीर में अनेक कष्ट साध्य उदर रोग उत्पन्न हो जाते हैं। कुछ आचार्य तो कब्ज को सभी रोगों का जनक मानते हैं। अतः जिन रोगियों को कब्ज की शिकायत रहती हो, मुंह में छाले हो जाते हों या खट्टी डकारें ज्यादा आती हों, उन्हें रात्रि को सोते समय गर्म पानी के साथ 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण पन्द्रह दिन तक सेवन करना चाहिए। इससे प्रातःकाल सुखपूर्वक मल प्रवृत्ति हो जाती है और सभी उदर रोगों से बचने में सहायता मिलती है।

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नेत्र रोगों में Triphala

जिन व्यक्तियों की दृष्टि कमजोर हो गई है, जो चश्मा हटाना चाहते हैं तथा जिनको पढ़ते समय सिरदर्द होने लगता है, आंखों से आंसू आते रहते हैं, आंखों में जलन व दर्द रहता है, ऐसे लोगों को त्रिफला के जल से आंखें धोने से फायदा होता है। इसके लिए रात्रि को एक तांबे के प्याले [पात्र] में तीन कप गर्म पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण मिलाकर रात भर भीगने दें।

सुबह इस चूर्ण को हाथ से अच्छी तरह मथकर छान लें। इस छने हुए जल में आंखों को दो मिनट तक डुबोए रखें या आंखों को इस पानी से धोएं। शेष बचे चूर्ण को मिश्री मिलाकर दूध के साथ सेवन करें रात्रि को भी दो ग्राम त्रिफला चूर्ण मिश्री और दूध के साथ सेवन करें। लगातार एक मास तक इसका प्रयोग करें। यदि चश्मे का नम्बर अधिक है, तो सप्तामृत लौह, महात्रिफला घृत, ज्योतिष्मती रसायन एवं चन्द्रोदयवर्ती का प्रयोग भी करें।

बालों का झड़ना व पकना

जिन व्यक्तियों के बालों की जड़ें कमजोर हो गई हों, बाल झड़ते हों, रुखे-रुखे व सख्त रहते हों या असमय ही सफेद हो गए हों। ऐसे लोगों के 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण को तीन कप पानी में मिलाकर, लोहे के प्याले या कड़ाही में रात भर भिगोकर रखें, सुबह हाथ से अच्छी तरह मथकर इस पानी से बालों को धोएं। साथ ही दो ग्राम त्रिफला चूर्ण सुबह- शाम दूध के साथ सेवन करें एवं महाभृंगराज तेल की सिर में मालिश करें। डेढ़-दो माह नियमित सेवन करने से बाल काले, मुलायम व बालों की जड़ें मजबूत हो जाती हैं।

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विषम ज्वर में Triphala

जब लम्बे समय से ज्वर हो या कभी होता हो और कभी शान्त हो जाता हो, तो त्रिफला कषाय का प्रयोग करें। विषम ज्वर में इसका अच्छा प्रभाव होता है।

प्रमेह में Triphala

सभी प्रकार के प्रमेह में त्रिफला चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।

व्रण शोधन में Triphala

त्रिफला में एण्टीसेप्टिक गुण चमत्कारिक रूप में प्राप्त होता है। कटने-फटने, छिलने, चोट लगाने से या फोड़े-फुन्सियों से बने मवाद युक्त घाव [व्रण] को त्रिफला क्वाथ से धोएं। इससे व्रण का सम्यक प्रकार से शोधन होता है, साथ ही यह व्रण रोपण भी कर देता है।

मोटापे में Triphala

मोटापा दूर करने के लिए त्रिफला क्वाथ 10 मि.ली. की मात्रा में शहद के साथ दिन में दो बार लम्बे समय तक सेवन करने से अच्छा लाभ प्रापत होता है। अन्य मेदोहर औषधियां भी साथ में ली जाएं, तो लाभ होता है।

त्वक् रोगों मे Triphala

सभी प्रकार के त्वचा रोगों यथा खुजली, पामा, छाजन, विचर्चिका आदि में त्रिफला क्वाथ का बाह्य व आभ्यान्तर प्रयोग करने से पर्याप्त लाभ होता है।

Triphala त्रिफला के उपर्युक्त प्रयोगों के अलावा भी त्रिफला का उपयोग विभिन्न योगों के साथ अनेकानेक रोगों में किया जाता है। उपर्युक्त प्रयोगों का किसी अनुभवी वैद्य की सलाह या देखरेख में ही उपयोग करना चाहिए।

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