Ashwagandha (अश्वगंधा) or “Withania somnifera” HorsePower of Vitality and Wellness
Origin of Withania somnifera (अश्वगंधा)
Withania somnifera (अश्वगंधा) कच्चे मूल से अश्व के समान गंध आती है, इसलिए इसे अश्वगंधा कहते हैं। इसे असगंध, बराहकर्णी, आसंध आदि नामों से भी जाना जाता है। यह एक प्रकार की भारतीय ‘जिनसेंग’ है। सारे भारत में यह पाई जाती है, पर पश्चिम मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले तथा नागौर [राजस्थान] की अश्वगंधा प्रसिद्ध व गुणकारी है।
इसका झाड़ीदार क्षुप लगभग 2 से 4 फुट ऊंचा बहुशाखा युक्त होता है। पत्ते सफेद रोमयुक्त अखंडित अंडाकार होते हैं। फूल पौला हरापन लिए चिलम के आकार के होते हैं एवं शरद ऋतु में निकलते हैं। फल गोलाकार रसभरी के फलों के समान होते हैं। फल के अंदर कटेरी के बीजों के समान पीताभ-श्वेत असंख्य बीज होते हैं। इसका मूल ही प्रयुक्त होता है, जिसे जाड़े में निकालकर छाया में सुखाकर सूखे स्थान पर रखा जाता है। बरसात में इसके बीज बोए जाते हैं।
यह उन स्थानों पर उग आता है, जहां वनौषधियां नहीं बन पाती। 5 किग्रा. बीज लगभग एक हैक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है। पहले नर्सरी में लगाकर उन्हें आधा-आधा मीटर की दूरी पर खेत में फैला देते हैं। सिंचाई की आवश्यकता अधिक नहीं पड़ती। खाद आदि की देखरेख की भी इतनी जरूरत नहीं। अधिक वर्षा तो हानिकारक है। दिसंबर में फूल, फल आने के बाद मार्च में पूरी फसल काट ली जाती है। जड़ों को कूट-कूट कर मिट्टी हटा देते हैं, और पतली अलग कर मोटी जड़ों को औषधि प्रयोजन के लिए चुन लेते हैं।
बाजारों में मिलने वाली शुष्क जड़ 10 से 20 सेमी. छोटे-बड़े टुकड़ों के रूप में मिलती है। यह प्रायः खेती किए हुए पौधे की जड़ होती है। जंगली पौधे की अपेक्षा इनमें स्टार्च आदि अधिक होता है। आंतरिक प्रयोग के लिए खेती वाले पौधे की जड़ तथा लेप आदि प्रयोग के लिए जंगली पौधे की जड़ ठीक रहती है।
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Benefits of Withania somnifera
असगंध एक बलवर्धक रसायन है। इसकी इस सामर्थ्य की चिर पुरातन से लेकर अब तक के सभी चिकित्सकों ने सराहना की है। आचार्य चरक ने असगंध को उत्कृष्ट बल्य माना है। सुश्रुत के अनुसार यह औषधि किसी भी प्रकार की दुर्बलता कृशता में गुणकारी है। पुष्टि-बलवर्धन को इससे श्रेष्ठ औषधि आयुर्वेद के विद्वान कोई और नहीं मानते। चक्रदत्त के अनुसार अश्वगंधा का चूर्ण 15 दिन दूध, घृत अथवा तेल या जल से लेने पर बालक का शरीर उसी प्रकार पुष्ट होता है, जैसे वर्षा होने पर फसलों की पुष्टि होती है। यही नहीं, शिशिर ऋतु में कोई वृद्ध इसका एक माह भी सेवन करता है, तो उसके लिए बहुत फायदेमंद होता है।
ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के प्रयोगों के अनुसार अश्वगंधा की जड़ में कई एल्केलाइड यथा-कुस्कौहाइग्रीन, एनाहाइग्रीन, ट्रोपीन, ट्रोयूडोस्पीन विदासोमीन एवं विदनॉल विटामिन पाए गए हैं। यह औषधि मूलतः कफ-वात शामक, बलवर्धक रसायन है।
अश्वगंधा (Withania somnifera) को सभी प्रकार के जीर्ण रोगों, क्षय शोथ आदि के लिए श्रेष्ठ द्रव्य माना गया है। कायाकल्प योग की यह एक प्रमुख औषधि है। यह शरीर में धातुओं की वृद्धि करती है एवं मांस मज्जा का शोधन करती है। मेधावर्धक है तथा मस्तिष्क के लिए तनाव शामक भी। मूर्च्छा, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, शोथ विकार, श्वांस रोग, शुक्र दौर्बल्य, कुष्ठ इन सभी में समान रूप से लाभकारी है। यह एक प्रकार के कामोतेजक की भूमिका निभाती है, परन्तु इसका कोई अवांछनीय प्रभाव शरीर पर नहीं देखा गया।
यह जरानाशक है। ऐजिंग (Aging) को यह रोकती है व आयु बढ़ाती है। रक्त का हिमोग्लोबिन इसके प्रयोग से बढ़ता है व सभी संधियों में लचीलापन आता है। यह एक प्रकार का हीमेटीनीक टॉनिक है। मूल चूर्ण 3 से 6 ग्राम एक बार में प्रायः प्रयुक्त करते हैं।
एक शोध से पता चला है कि अश्वगंधा (Withania somnifera) की जड़ में विधाफेरीन-ए नामक एल्केलाइड प्रमुख रूप से पाया गया, जिसमें कैंसर के ट्यूमर की वृद्धि को रोकने की पर्याप्त क्षमता होती है। इस जड़ के जलीय एवं अल्कोहलिक फार्मूले का शरीर पर कम विषैला प्रभाव पड़ता है एवं उससे ट्यूमर विरोधी गुण प्रबल रूप से पाए जाते हैं। ऐसी प्रबल संभावना है कि अश्वगंधा कैंसर से छुटकारा दिलाने में काफी मददगार सिद्ध होगी।
अश्वगंधा (Withania somnifera) के लगातार एक वर्ष सेवन से शरीर से सारे विकार बाहर निकल जाते हैं। समग्र शोधन होकर दुर्बलता दूर हो जाती है व जीवनी शक्ति बढ़ती है। इसका निरंतर उपयोग अमृता की तरह जरा को समीप नहीं आने देता। अगहन-पूस [ठंड] में इसका सेवन विशेष लाभकारी है।
यूनानी में अश्वगंधा को वहमनेवरों के नाम से जाना जाता है। हब्ब असगंध इसका एक प्रसिद्ध योग है। हकीम दलजीत सिंह के अनुसार यह तीसरे दर्जे में उष्ण रुक्ष है। इसका गुण बाजीकरण, बलवर्धन, शुक्रल, वीर्य पुष्टिकर है। महिलाओं को प्रसवोपरान्त देने से बल प्रदान करता है। शरीर में सात्मीकरण लाकर, जीवनी शक्ति बढ़ाने तथा शक्ति देने वाले कायाकल्प के लिए चिर प्रचलित रसायन है- अश्वगंधा। इन्हें शरीर के सारे संस्थानों पर क्रियाशील माना गया है।