Vastu Shastra वास्तु शास्त्र का अर्थः
Vastu वास्तु शब्द ‘वस्तु’ से बना है। वस्तु का अर्थ ‘जो है’ होता है, अर्थात् जिसकी सत्ता है, वही वस्तु है। वस्तु से सम्बन्धित शास्व ही वास्तु शारख कहलाता है।
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Vastu Shastra वास्तु शास्त्र कोई आधुनिक विषय नहीं बल्कि इसका महत्व युगों-युगों से चला आ रहा है। वास्तु शास्त्र के अन्तर्गत भूमि का आकार-प्रकार, वनने वाले भवन को दिशा, भूमि की जाँच तथा शोधन जैसी बहुत-सी बातें आती हैं।
Vastu Shastra वास्तुशास्त्र के द्वारा कुछ मुख्य सूत्रों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
- ईशान कोण ईश्वर का क्षेत्र माना जाता है। इसलिए गृह देवालय अथवा पूजास्थल ईशान कोण में ही बनाएं। ये कोण हर समय साफ स्वच्छ रहना चाहिए।
- ईशान कोण में ही पूजा-आराधना करनी चाहिए। ध्यान एवं आध्यात्मिक उन्नति साधन के लिए यह कोण सर्वोत्तम है। जल-स्रोत-कुआं, अंडरग्राउंड जलभंडारण के लिए यह कोण सर्वोत्तम है। इस कोण में बाग-बगीचा भी लगाया जा सकता है।
- मकान का ज्यादा-से-ज्यादा निर्माण South West दक्षिण-पश्चिम अर्थात् नैर्ऋत्य दिशा में होना चाहिए। यह कोण नैर्ऋत्य पूतना राक्षसी का स्थान है और इस कोण की भार वहन क्षमता अधिक है। भवन-निर्माण के बाद ज्यादा भारी सामान इसी दिशा में रहना चाहिए।
- निर्माण स्थल की भूमि का ढलान North उत्तर दिशा में तथा East पूर्व दिशा में होना चाहिए, जिससे जल का निकास उत्तर-पूर्व दिशा में हो यानि ईशान कोण में है। निर्माण हो जाने पर मकान का जल पूर्व दिशा उत्तर दिशा में हो।
- मकान के East पूर्व में तथा North उत्तर में खाली स्थान जरूरी छोड़ें। पूर्वोत्तर कोण ईशान का अभाव खाली रखें, क्योंकि यह ईश्वर का स्थान माना जाता है। इस कोने को साफ-सुथरा रखें।
- इस कोने में कोई भारी-भरकम सामान न रखें। वैसे अगर निर्माण के चारों तरफ खाली स्थान छोड़ा जाए तो वह उत्तम होता है लेकिन उसे कम से कम होना चाहिए; अर्थात् पूर्व की तरफ पश्चिम की अपेक्षा ज्यादा एवं उत्तर में दक्षिण की अपेक्षा अधिक स्थान छोड़ना चाहिए।
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- Vastu Shastra: पूर्व (East) अथवा उत्तर (North) दिशा में गृह की खिड़कियां तथा दरवाजे ज्यादा-से- ज्यादा होने चाहिएं, इसके विपरीत दक्षिण-पश्चिम (South West) की तरफ कम। पूर्व और उत्तर की तरफ के दरवाजे खिड़कियों से सूर्य का प्रकाश एवं स्वच्छ वायु का अबाध आवागमन होता है। जिससे घर में निवास करने वालों को सुख-शान्ति मिलती है।
- पूर्व की तरफ अधिक खुलापन रहने से प्रातःकालीन सूर्य की रश्मियों (Sun Rays) का पूरा लाभ मिलता है तथा इस भाग से भवन में वायु के प्रवेश से भवन में व्याप्त वायु प्रदूषण कम होता है।
- घर में भोजन प्रबन्ध के लिए रसोईघर (Kitchen) का निर्माण होता है-रसोईघर में अग्नि के द्वारा भोजन बनाया जाता है। अग्नि के लिए आग्नेय कोण जो दक्षिण-पूर्व कोण है ही उत्तम। इस कोण में अग्नि देवता का वास है। इस क्षेत्र में किचन बनाने से अग्निदेव की कृपादृष्टि हमें प्राप्त होती है, इस कोण की भूमि ऊंची होनी चाहिए।
- पूर्व दिशा में किचन होने से सूर्य की रश्मियों के प्रदेश से किचन में छिपे कीटाणु नष्ट हो जाते हैं इस प्रकार सीलन, दुर्गन्ध दूर हो जाती हैं। वातावरण स्वच्छ बनता है।
- उत्तर-पूर्व में दरवाजे-खिड़कियां ज्यादा होने चाहिएं। उसके विपरीत दक्षिण-पश्चिम की तरफ कम होने चाहिएं। ऐसा करने से गर्मी के मौसम में दक्षिण और पश्चिम में स्थित कमरे ठण्डे रहेंगे और सर्दियों में गर्म रहेंगे जिससे इन कमरों में रहने वालों को आराम मिलेगा इसलिए यहां खिड़की-दरवाजे कम होने चाहिएं।
- अपनी वाटिका में कब्रिस्तान, शमशान सड़कों के किनारों या मृत व्यक्तियों द्वारा दिये गये या फिर नदियों के कटाव स्थल के आस-पास से लाए गए पौधे न लगाएं।
- मुख्य दरवाजे की ऊंचाई तथा चौड़ाई से घर के अन्दर के दूसरे दरवाजों की लम्बाई-चौड़ाई कुछ कम रखनी चाहिए। वास्तु द्वारा इन्हें एक-समान न बनाएं। अगर आप उत्तर तथा पूर्व में दरवाजे बना रहे हैं तो इन्हें मध्य में न बनाएं। उत्तर का दरवाजा पूर्व दिशा की तरफ तथा पूर्व का दरवाजा उत्तर की तरफ बनायें ।
Vastu Shastra वास्तुशास्त्र की जीवन में उपयोगिता
- अगर मकान में दोनों दिशाओं में दरवाजे हों तो दरवाजा एकदम आमने-सामने न लगाएं। उनमें थोड़ा अन्तर रखें। आमने-सामने के दो दरवाजों के लिए पूर्व व पश्चिम की दिशाएं उत्तम हैं, इस प्रकार वायु आगमन का संतुलन बना रहेगा।
- मकान अथवा कार्यालय या वाणिज्य स्थल तथा कारखाने का मुख्य दरवाजा कभी जमीन की सतह के नीचे की तरफ न लगाएं; अर्थात् प्रवेश द्वार जमीन की सतह के बराबर रहे।
- मकान के निर्माण में जहां ईशान कोण को खाली-खाली और साफ-सुथरा रखने का निर्देश दिया गया है उसी के अनुसार मकान के अन्दर के प्रत्येक कमरे का भी ईशान कोण खाली तथा साफ-सुथरा रखें। कमरे में कचरे का डिब्बा कभी ईशान कोण में न रखें।
- अगर भूखण्ड का पूर्वी भाग तथा उत्तरी भाग नीचा है एवं छोटी चट्टानें पहाड़ या पठार अथवा कोई ऊंची इमारत दक्षिण अथवा पश्चिम दिशायें हैं तो ऐसा भूखण्ड उत्तम श्रेणी में गिना जाएगा।
- वास्तुशास्त्र Vastu Shastra के अनुसार उत्तर-पूर्व दिशा की तरफ पहाड़-पठार आदि शुभदायक नहीं होते।
- भूमि का उत्तर-पश्चिम कोण अगर बढ़ा हुआ हो तो वह घर के मालिक के लिए अधिक खर्च का कारण बनता है जबकि उत्तर-पूर्व कोना अगर बढ़ा हुआ है तो वास्तुशास्त्र Vastu Shastra के अनुसार वह आपकी धन-धान्य व उत्साहवृद्धि करता है।
- वास भूमि के दक्षिण-पश्चिम कोण में पहाड़-पठार आदि का कोना धन-धान्य में वृद्धि करेगा।
- Vastu Shastra: गायें बांधने वाली भूमि भवन के लिए पूरी तरह उपयुक्त होती है और उस आवास में वास्तुदोष नहीं होते जिसे भूमिगत वास्तुदोष कहते हैं, वह गायों के वास से मिट जाता है। जिस भूमि पर अन्न आदि के बीज डालने पर वे अच्छी तरह फलते-फूलते हैं तो वह भूमि भी भूमिगत वास्तुदोषों से रहित समझें, जिस भूमि पर पेड़-पौधे जल्द बढ़ें उसे वास्तुशास्त्र के द्वारा उत्तम भूमि कहा गया है।
- सोते समय उत्तर की तरफ सिर, दक्षिण की तरफ पैर करके सोने का निषेध है, उसका सकारण तथा उसके वैज्ञानिक आधार की चर्चा हो चुकी है। पूर्व की तरफ सिर करके सोने से बल-बुद्धि का विकास होता है।
- दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन-धान्य-सम्पदा में वृद्धि होती है।
पश्चिम दिशा की तरफ सिर करके सोने से अनावश्यक चिन्ता व हानि होती है। - घर के अन्दर जहां बीम हो उसके नीचे न सोयें। बीम के नीचे बैठकर पूजा-पाठ भी न करें। व्यापारी लोगों को भी बीम के नीचे बैठकर वाणिज्य नहीं करना चाहिए, न ही ग्राहक आकर बीम के नीचे खड़ा हो, तिजोरी गल्ला आदि भी बीम के नीचे न रखें।
- बीम के नीचे बैठने या सोने से मानसिक उद्वेग पैदा होता है और आया हुआ ग्राहक भी बीम के नीचे खड़ा होकर यह सोचता है कि लूं अथवा न लूं-और वह बिना कुछ लिये वापस लौट जाता है।
- घर के नीचे की मंजिल से ऊपर की मंजिल में दरवाजे तथा खिड़कियों की संख्या कम होनी चाहिए।
- भूमिगत जल भंडारण अगर आप उत्तर-पश्चिम दिशा में बनाते हैं तो उससे वंशवृद्धि में रुकावट आएगी-धनहानि के साथ-साथ मानसिक अशान्ति तथा कलेश से आप उबर नहीं सकते हैं, इसका बिल्कुल सही स्थान उत्तर-पूर्व है।
- अगर आपको मकान का विस्तार करना है तो चारों दिशाओं में करना ही उत्तम माना जाता है। सिर्फ दक्षिण-पश्चिम में अथवा दक्षिण-पूर्व में विस्तार करने से धन-हानि, कलेश, आगजनी, दुर्घटना, चोरी-डकैती, स्वास्थ्य-हानि अनावश्यक चिन्ता, क्लेश आदि होती हैं।
- वास्तुशास्त्र Vastu Shastra के अनुसार रसोईघर मकान के प्रवेश द्वार के सामने कभी नहीं होना चाहिए।
- रसोईघर अथवा शौचालय कभी भी ईशान कोण में न बनायें यह पूरी तरह दुःखदायी है तथा इससे परिवार के लोगों में अशान्ति-कलह तथा जीवन-स्तर में उत्तरोत्तर गिरावट आएगी तथा मानसिक असन्तुलन और पागलपन की स्थिति हो जाएगी।
- बैडरूम में मदिरा का सेवन, तेल के डिब्बे, मूसल, अंगीठी, कीटनाशक आदि वस्तुएं नहीं रखनी चाहिएं। इससे मानसिक उद्वेग बढ़ता है और चिन्ता तथा परेशानी भोगनी पड़ती है। झाडू को भी बैडरूम में कभी न रखें, यह स्थिति हानिकारक होती है।
- बैडरूम में सुगन्धित फूलों का गुलदस्ता लगाया जा सकता है लेकिन उसका स्थान बैडरूम के बीच में नहीं अपितु सोने वाले के सिरहाने अथवा बैडरूम के कोने में रखना उत्तम है। गुलदस्ते के सूखने तथा फूलों के मुर्झा जाने पर उसे बदल देना चाहिए। सूखे गुलदस्ते को शयनकक्ष में नहीं रहने देना चाहिए। • पुस्तकालय एवं अध्ययन का स्थान ईशान कोण ही है, इस ईश्वरीय कोण में बैठकर विद्याभ्यास करने से छात्र-छात्राएं ज्यादा उन्नति करते हैं- स्वाध्याय तथा भगवत चिंतन के लिए केवल यही दिशा है वैसे उत्तर तथा पूर्व दिशा में बैठकर भी अध्ययन-अध्यापन किया जा सकता है-विद्यार्थी का मुंह अध्ययन के समय ईशान की तरफ होना उत्तम है।
- VAstu Shastra में पुस्तकालय का स्थान नैर्ऋत्य कोण में है, जो दक्षिण तथा पश्चिम दिशा का संगम है। अगर इस कोण में संभव न हो तो पुस्तकों को दक्षिण या फिर पश्चिमः में रखें। ईशान या उत्तर में या फिर पूर्व दिशा में कभी न रखें।
- घर की दीवार पर घड़ी लगानी हो तो उत्तर-पूर्व एवं पश्चिम की दीवार पर लगाएं, दक्षिण की दीवार पर घड़ी न लगाएं, तो उत्तम रहता है, वास्तु द्वारा यह स्थिति अच्छी मानी जाती है।
- बैंक की पास बुक जमा बही खाते, मुकदमे आदि के कागजात आदि को ईशान कोण अथवा पूर्व दिशा में रखें इससे धनवृद्धि और मामलों में विजय मिलती है।
- अध्ययन कक्ष तथा पुस्तकालय अध्ययन का स्वाध्याय स्थान ईशान कोण ही है, इस ईश्वरीय कोण में बैठकर विद्याभ्यास करने से छात्र-छात्राएं ज्यादा उन्नति करते हैं।
- आवास भवन की ऊंचाई दक्षिण-पश्चिम अधिक तथा उत्तर-पूर्व से कम होनी चाहिए तथा दक्षिण-पश्चिम की दीवारें उत्तर-पूर्व की दीवारों की अपेक्षा मोटी और भारी होनी चाहिएं।
- Vastu Shastra में घर के बीच में जल भण्डारण कभी नहीं बनाना चाहिए। यह हमेशा कष्टकारी होता है और नुकसान करता है तथा अशुभ सूचक है इससे घर में अशान्ति तथा परिवार में कलह होती है तथा वंश नष्ट होता है।
- घर में टूटे हुए शीशे की पेन्टिंग अथवा चित्र आदि न रखें। टूटे हुए शीशे को फौरन बदलवा दें या फिर उसे फेंक देना चाहिए। दर्पण चाहे छोटा हो या बड़ा अगर टूट गया है, तो उसे हटा दें, टूटा दर्पण कभी नहीं रखना चाहिए।
- दर्पण लगाने के लिए घर की उत्तर तथा पूर्व की दिशा शुभ है अन्य दिशाओं में दर्पण न लगायें।
- घर की सीढ़ियों के नीचे चाहें तो छोटा-सा कमरा बना सकते हैं, पर उस कमरे में पूजास्थल नहीं बन सकता है और उस कमरे में शौचालय या चौकीदार का बैडरूम नहीं बनाना चाहिए। नहीं तो उसमें रहने वालों को अशान्ति से गुजरना पड़ सकता है।
- पूजाघर के ऊपर से तो चलना-फिरना निषेध है एवं शौचालय के ऊपर से यातायात अशुभ चिंतादायक और कष्टदायक है।
- घर के अन्दर आलमारी और तिजोरी के कपाट उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ खुलने चाहिएं। इस प्रकार धनागमन उत्तम होगा और उसका ठहराव भी रहेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि तिजोरी, आलमारी आदि को हमेशा दक्षिण तथा पश्चिम की दीवारों से लगा हुआ रखें।
- हमेशा भारी-भरकम तिजोरियों को या आलमारी को दक्षिण-पश्चिम कोण दिशा में ही रखें। दक्षिण की तरफ खुलने वाली आलमारी हमेशा खाली रहती है।
- मकान अथवा वाणिज्य परिसर के उत्तर-पूर्व की दिशा में कोई भी टूटा-फूटा स्थान, भग्नावशेष, कोई अन्य दोष, कोई खाई झाड़-झंकाड़, अशुद्धि अगर होगी तो धनहानि के साथ-साथ अपंग सन्तान उत्पन्न होगी और घर के मालिक को भी कष्ट उठाना पड़ेगा।
- घर-कार्यालय, कारोबार स्थल-दुकान, होटल या अन्य कोई भी प्रतिष्ठान हो पूजास्थल यानि लक्ष्मीजी गणेशजी की स्थापना उत्तर-पूर्व कोण या उत्तर या पूर्व में ही करें, अन्य किंसी दिशा में न करें।
- रसोईघर के पास शौचालय तथा शौचालय के पास पूजागृह अथवा रसोई के अन्दर पूजास्थल न बनायें इससे नुकसान के अलावा कोई लाभ नहीं हो सकता।
- अपने घर के सामने, वाणिज्य स्थल के दरवाजे के सामने बिजली अथवा टेलीफोन या कोई भी अन्य स्तम्भ न लगाने दें न ही घर के दरवाजे के सामने कूड़ा जमा करने की कचरापेटी लगाने दें।
- अपने घर का कूड़ादान भी मुख्य दरवाजे के सामने न रखें और मुख्य दरवाजे के सामने घर के अनुपयोगी सामानों की कतार न लगाएं। झाडू को मुख्य दरवाजे के सामने न रखें।
- सोते समय बैडरूम में या अन्य समय में भी झाडू या जूठे बर्तन न रहने दें। बैडरूम की साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें। बैडरूम में वन्य प्राणियों के तथा अन्य डरावने चित्र न लगाएं। जिस तरफ आप पैर करके सोते हैं उस दिशा में देवी-देवता के चित्र. न लगाएं।
- मकान में स्थापित पूजास्थल में देवी-देवताओं की मूर्तियों तथा चित्रों का मुख पूर्व-उत्तर तथा पश्चिम की तरफ रखें। पूजा-अर्चना के समय व्यक्ति का पूर्व या ईशान की तरफ मुख करके खड़े होना अथवा बैठना उत्तम है।
- घर के मालिक का कमरा जहां तक संभव हो सके पश्चिम दिशा में ही बनाएं-यह सब भांति श्रेष्ठ है जहां तक सम्भव हो सके दक्षिण-पश्चिम नैर्ऋत्य कोण में बनाने का प्रयत्न करें। इस प्रकार घर के मालिक का भारी-भरकम सामान भी आप इस दिशा में रखें।
- भवन-निर्माण में अगर भवन में उत्तर दिशा की तरफ बरामदा बनाया जाता है तो दक्षिण में भी बरामदा अवश्य बनाएं। लेकिन दक्षिण की तरफ के बरामदे को कांच की खिड़कियों या पर्दो से ढककर रखें जिससे दक्षिण दिशा में कम खुलेपन वाला सिद्धान्त पहले दिया गया है उसी का पालन करें।
- अगर घर में कोई व्यक्ति बीमार चल रहा है तो उसे दक्षिण-पश्चिम के कोने में रखें। इस प्रकार उसके जल्दी ठीक होने की संभावना बनी रहती है। इस दिशा में गर्मियों में कम गर्मी तथा सर्दियों में कम सर्दी रहती है इस वजह से प्राकृतिक ऊर्जा का लाभ रोगी को पूरा-पूरा मिलता है-और रोगी रोग से जल्दी-से-जल्दी छुटकारा पा जाता है।
Vastu Shastra के कुछ आवश्यक सूत्र
वास्तुशास्त्र Vastu Shastra के अनुसार कुछ आवश्यक सूत्र निम्नलिखित हैं-
- भूखण्ड-निर्माण वास्तुदोष तथा भूमिदोष दूर कर ही प्रारम्भ करना चाहिए अन्यथा शुभता नहीं रहती है।
- वास्तुशास्त्र के अनुसार भवन और मुख्य दरवाजे के बीच कोई भी निर्माण या रुकावट नहीं होनी चाहिए।
- वास्तुशास्त्र के अनुसार मुख्य दरवाजा किसी कोणात्मक स्थिति में भी न हो। • आपके मुख्य दरवाजे के ठीक सामने ऊंचे टीले, पहाड़ या इमारतें नहीं होनी चाहिएं।
- भूमि के आस-पास कोई भी ऐतिहासिक खण्डहर, भवन, उजड़े हुए बगीचे सांप, छछूदर, चूहों के बिल नहीं होने चाहिएं।