Introduction: Astrology Science (ज्योतिषशास्त्र) Jyotish Shastra
मनुष्य के समस्त कार्य ज्योतिष के द्वारा ही चलते हैं। व्यवहार के लिए अत्यन्त उपयोगी दिन, सप्ताह, पक्ष, मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सवतिथि आदि का परिज्ञान इसी शास्त्र से होता है। यदि मानव-समाज को इसका ज्ञान न हो तो धार्मिक उत्सव, सामाजिक त्यौहार, महापुरुषों के जन्मदिन, अपनी प्राचीन-गौरव-गाथा का इतिहास प्रभृति किसी भी वात का ठीक-ठीक पता न लग सकेगा और न कोई उचित कृत्य ही यथासमय सम्पन्न किया जा सकेगा।
शिक्षित या सभ्य समाज की तो बात ही क्या, भारतीय अपढ़ कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिचित है; वह भलीभाँति जानता है किस नक्षत्र में वर्षा अच्छी होती है, अतः कब बोना चाहिए जिससे फ़सल अच्छी हो। यदि कृषक ज्योतिषशास्त्र के उपयोगी तत्त्वों को न जानता तो उसका अधिकांश श्रम निष्फल जाता। कुछ विद्वज्जन यह तर्क उपस्थित कर सकते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में कृषिशास्त्र के मर्मज्ञ असमय में ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को सम्पन्न कर लेते हैं; इस दशा में कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं।
पर उन्हें यह भूलना न चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष का एक लघु शिष्य है। ज्योतिषशास्त्र के तत्त्वों से पूर्णतया परिचित हुए बिना विज्ञान भी असमय में वर्षा का आयोजन और निवारण नहीं कर सकता है। वास्तविक बात यह है कि चन्द्रमा जिस समय जलचर राशि और जलचर नक्षत्रों पर रहता है, उसी समय वर्षा होती है। वैज्ञानिक प्रकृति के रहस्य को ज्ञात कर जब चन्द्रमा जलचर नक्षत्रों का भोग करता है, वृष्टि का आयोजन कर लेता है। वराहीसंहिता में भी कुछ ऐसे सिद्धान्त आये हैं जिनके द्वारा जलचर चान्द्र नक्षत्रों के दिनों में वर्षा का आयोजन किया जा सकता है।
Astrology Science ज्योतिषी उपायों में एक सर्वश्रेष्ठ उपाय हे श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ।
श्री विष्णुसहस्त्रनाम के पाठ द्वारा ना केवल नव ग्रहों के कोप से बच सकते हे अपितु हमारे जीवन में भविष्य में आने वाले संकटों से भी हमारी रक्षा होती है। यूँ समझे की जैसे बहुत तेज मूसलाधार बरसात में हमें कहीं छाता मिल जाये और हम बीमार होने से बच जाएँ , परन्तु ये बहुत ही आवश्यक विषय हे की हम हमारे जीवन में कार्य करते समय बुरे कार्यों से बचे ताकि वे बुरे कर्म हमारी भविष्य की कुंडली से न जुड़ पाएं।
ये पाठ हमारी सभी प्रकार से रक्षा तो करेगा ही साथ में भविष्य में हमे उचित मार्ग भी दिखलायेगा। जीवन में अपने इष्ट के प्रति विश्वास की जड़ जितनी गहरी होगी उतना ही हमारा जीवन सुखमय होगा।
आज के युग में लगभग पढ़े लिखे वर्ग में भी कई स्थानों में और कई जातियों में जन्म पत्रिका मिलाकर ही विवाह सम्बन्ध जोड़ने का रिवाज है। गलत मिलान के परिणामस्वरूप सच्चे या शुद्ध हृदय वाले प्रेमी बिना विवाह के अलग हो जाते हैं तथा जन्माक्षर मेल भी मनमेल बिना के पात्र के साथ हो जाने से नीरस जीवन जीने के लिये मजबूर हो जाते हैं या विवाह-विच्छेद, विधवा या विधुर होने के असंख्य उदाहरण देखने में आये हैं। इस विषय का समर्थन वह समुदाय नहीं करता है, जो शिक्षित है और जिसके हाथ में अधिकार सूत्र है।
यद्यपि इसका अभ्यास ऐसे लोगों के हाथ में स्वभावतः चला जाता है, जिनका एक मात्र उद्देश्य रुपया कमाना होता है और इसके लिये वह यजमान को धोखा देना बुरा नहीं समझते हैं। इस प्रकार ग्रहों का प्रभाव जीवन भर शरीर के साथ चलता रहता है और उसी प्रकार से काम करने की प्रेरणा मिलती रहती है।
शनि, मंगल, राहु तथा सामने सूर्य, बुध, 6,12 या 2, 8 भाव में परस्पर होते हैं, तो जातक क्रिमीनल माईण्ड होता है तथा बंधन, जेल आदि योगों में से गुजरता है। इसी प्रकार 3-5 या 9-11 भाव, ऐसे योगों में दृष्टि देते गुरु, बुध, शुक्र आदि की दृष्टि में आ जाने से बदनामी के कलंक से धीरे-धीरे जातक बाहर निकलता है। इस प्रकार ग्रहों का प्रभाव जातक के जीवन पर होता रहता है।
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गौ सेवा से करें अपने कुल के पितरों को प्रसन्न
विशेषकर एकादशी, अमावस्या, पूर्णिमा तिथि को अपने कुल के पितरों की ओर से संकल्प करके गौ को पौष्टिक आहार दान करें जैसे पालक, साफसुथरा हरा चारा, अन्य फल और सब्जियाँ , इसमें एक विशेष बात भाव की होती हे, हमारे पितृ जो हमारे जन्म दाता होते हैं वे हमारे मन से जुड़े होते हैं और अवश्य ही हमारे भावों को समझते हैं, उनसे कुछ छुपा नहीं हे।
भारतीय ज्योतिर्विदों का अभिमत है कि मानव जिस नक्षत्र-ग्रह वातावरण के तत्व-प्रभाव विशेष में उत्पन्न एवं पोषित होता है, उसमें उसी तत्त्व की विशेषता रहती है। ग्रहों की स्थिति की विलक्षणता के कारण अन्य तत्त्वों का न्यूनाधिक प्रभाव होता है।
देशकृत ग्रहों का संस्कार इस बात का द्योतक है कि स्थान-विशेष के वातावरण में उत्पन्न एवं पुष्ट होनेवाला प्राणी उस स्थान पर पड़नेवाली ग्रह-रश्मियों को अपनी निजी विशेषता के कारण अन्य स्थान पर उसी क्षण जन्मे व्यक्ति की अपेक्षा भिन्न स्वभाव, भिन्न आकृति एवं विलक्षण शरीरावयववाला होता है।
ग्रह-रश्मियों का प्रभाव केवल मानव पर ही नहीं, बल्कि वन्य, स्थलज एवं उद्भिज्ज आदि पर भी अवश्य पड़ता है। ज्योतिषशास्त्र में मुहूर्त-समय-विधान की जो मर्म-प्रधान व्यवस्था है, उसका रहस्य इतना ही है कि गगनगामी ग्रह-नक्षत्रों की अमृत, विष एवं अन्य उभय गुणवाली रश्मियों का प्रभाव सदा एक-सा नहीं रहता।
गति की विलक्षणता के कारण किसी समय में ऐसे नक्षत्र या ग्रहों का वातावरण रहता है, जो अपने गुण और तत्त्वों की विशेषता के कारण किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए ही उपयुक्त हो सकते हैं। अतएव विभिन्न कार्यों के लिए मुहूर्तशोधन, अन्धश्रद्धा या विश्वास की चीज नहीं है, किन्तु विज्ञानसम्मत रहस्यपूर्ण है। हाँ, कुशल परीक्षक के अभाव में इन चीजों की परिणाम-विषमता दिखलाई पड़ सकती है।
ज्योतिष विषयों पर भारत में जितना लिखा गया है, उतना जगत में अन्य किसी भी स्थान पर नहीं लिखा गया है। हमारे पूर्वजों द्वारा लिखित संहितायें आज भी भारतीय ज्योतिष पद्धति की परिपक्वता सिद्ध करती हैं। ज्योतिष उत्तरोत्तर प्रगति करता जा रहा है। अनेक बुद्धिमान लोग सहृदयता तया आत्मीयता से लगातार अभ्यास कर रहे हैं। नये-नये संशोधित मुद्दे ज्योतिष अभ्यास करने वालों के समक्ष लाकर, शास्त्र को समृद्ध बना रहे हैं।
ज्योतिष मंडल की यही त्रुटि है, कि बुद्धिमान व्यक्तियों द्वारा किये गये संशोधनों को न स्वीकार कर रूढ़िगत शास्त्र के अनुसार ही फलादेश को मान्यता देते हैं। नये संशोधनों को स्वीकारे बिना किसी भी शास्त्र की प्रगति नहीं हो पाती है, यह निर्विवाद सत्य है। आज ज्योतिषशास्त्र को सीखने वालों की संख्या अधिक शीघ्रता से बढ़ती जा रही है।
भारतीय और पाश्चात्य ज्योतिष पद्धति की विविध शाखाओं में अनेक बुद्धिमान, अत्यन्त परमज्ञानी ज्योतिषशास्त्रियों ने ओजस्वी लेखन कर इस शास्त्र में अपना अमूल्य योगदान दिया है, इसीलिये हजारों वर्षों से यह शास्त्र विश्व में आज तक टिका हुआ है।
राज्य की सहायता के बिना ज्योतिष शास्त्र में संशोधनों की शक्यता नगण्य है। वैज्ञानिक संशोधनों को राज्याश्रय है; परन्तु ज्योतिषशास्त्र के लिये ऐसा नहीं है। अनेक विज्ञानवादी और राजनीतिज्ञ ज्योतिषशास्त्र की सलाह लेते नजर आते हैं, लेकिन कोई भी खुले मन से, प्रमाणिकता से इस बात को कबूल नहीं करते हैं।
कोई भी इस शास्त्र को मदद करने के लिये आगे भी नहीं आता है। ऐसी आज की दंभ भरी हुई स्थिति और नीति है। ज्योतिषियों को ही उनका संशोधन करना है, चाहे उसमें उनकी शक्ति खर्च करने की है या नहीं।